बिरसा मुंडा नाम ही काफी है दुश्मनों के लिए

(हरिलाल नेताम माकड़ी, जिला कोंडागांव, छत्तीसगढ़)

15 नंबर सन् 1875 को झारखंड के खुटी जिले के उलीहातु नामक गांव में, पुरे भारत में नई प्रकाश किरणें छाने लगी, एक मसीहा जन्म लिया बिरसा मुंडा उसका नाम था। माता उसकी कुरमी हटू पिता सुगना मुंडा था।

ब्रिटिश शासकों द्वारा की गई बुरी दशा को सोचते हुए, छोटी सी उम्र में क्रांति का बिगुल फूंका शत्रुओं के उड़ाई होश।जल जंगल जमीन  बचाने के लिए  लड़ने वाला एक वीर क्रांतिकारी था, भारत को आजादी दिलाने में उसका बहुत बड़ा योगदान था। उस जमाने में भारत देश सोने की चिड़िया कहलाती थी, इस भारत देश में ना जाने किस दुश्मनों की नजर पड़ी पुरे भारत दुश्मनों के कब्जे में आ गई थी ।

फिर भी उन्होंने हार न मानी फिर क्रांतिकारीयो की संगठन बनाई, गरीब शोषित वंचित के बहुत  बड़ा महामारी आई जिसमें लोगों आदिवासीयों  ने जान गंवाई। फिर बिरसा मुंडा ने खुद के दिल अपनी जोश ठान लिया, एक एक दुश्मनों को चुन चुन कर दुश्मनों को धुल चटाई।

समाज के प्रति लगाव था उसका गरीब मजदुरो के हमेशा था साथ उसका, अपनी जिन्दगी को जोखिम में डालकर समाज को जगाने का काम था उसका। अपने जीवन काल में एक महापुरुष का दर्जा पाया, धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा कहलाया।

मेरा सोच ✍️

मुझे उनकी इतिहास लिखने नहीं आता, लेकिन  बिरसा मुंडा खुद अपने आदिवासी भारतीय समाज का इतिहास हमेशा के लिए लिख कर गए । उस इतिहास को दोहराना हमारी समझ की कर्तव्य है। उनका जन्म  15 नंबर सन् 1875 को झारखंड के खुटी जिले के उलीहातु नामक गांव में आदिवासी मुंडा परिवार में हुआ था । उनके माता का नाम कुरमी हटू तथा पिता  सुगना मुंडा था जिन्होंने अपनी परी जीवन जल जंगल जमीन एवं आदिवासी समाज को जगाने का किया। लेकिन मैं सोचता हूं कि बिरसा मुंडा की समाज के लिए दिया गया कुर्बानी को समझ पाएगा किया। उन्होंने आदिवासी समुदाय के साथ हो  रही अन्याय अत्याचार के खिलाफ नया आगाज़ लिखा उस आगज को ए पीढ़ी दोहरा पाएगा किया। बिरसा मुंडा ने हमें न्याय अत्याचार से मुक्ति कराए थे। लेकिन हम उसकी कदम से कदम मिलाकर चलना छोड़ रहे हैं। फिर अन्याय अत्याचार में जूझ रहे हैं। बिरसा मुंडा की कुर्बानी को याद करने की जरूरत है उन्होंने जिस रास्ते से चलना सिखाया उसी रास्ते में फिर से चलना होगा।

आज भी देश भर में आदिवासियों के दिलों में उनके विचारों में बिरसा मुंडा की विचार जीवीत है। चाहे संवैधानीक लड़ाई हो या शोषण, अन्याय और अत्याचार की लड़ाई हो आज के आधुनिक युवाओं में बिरसा मुंडा के विचार देखने को मिलता है। मुझे ऐसे युवा क्रांतिकारीयो को देखकर बहुत गर्व महसूस होता है। फिर से क्रांतिकारी बिरसा मुंडा बनेंगे। जागो हम ही हो आखरी पीढ़ी है अभी नहीं तो कभी नहीं आने वाली पीढ़ी कागज के पन्नों में खोजता रहेगा अपनी समुदाय को जोहार……